Sunday, November 2, 2014

सोशल नेटवर्किंग

एक मित्र से व्हाट्सप्प पे चैट करते करते एक दूसरी मित्र  चर्चा चल पड़ी
 मैंने ऐसे ही उसका नंबर मांग लिया की थोड़ी लेग पुल्लिंग करूँगा उसकी
नंबर मैंने सेव करके उस मित्र को मैसेज किया
कुछ देर में उसका जवाब आया "हु इज दिस ? "
मैंने भी शरारती अंदाज में कहा " पहचानो "
उसने कहा " हिंट दो "
मैंने कहा " हम बचपन में साथ पढ़े है और तुम मुझे अपना सबसे अच्छा मित्र कहती थी "
उसने कुछ पल सोचके कहा "अमित ?"
मैंने कहा " नहीं ,,,,, और अमित से तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड हो गया ? तुम तो हमेशा उसकी बुराइया करती थी "
वो हसी फिर बोली " कपिल हो न तुम ? "
मैंने कहा "नहीं यार ,,,, और ये कपिल कौन है ? हमारे साथ कोई कपिल तो नहीं था बचपन में "
उसने कहा " ओह हाँ ,,,,, बचपन ,,,,, हम्म्म ,,,,, तो तुम देवेश हो न ?"
मैंने कहा " नो यार ,,,,, एक और हिंट देता हूँ "
उसने कहा " हाँ दो "
मैंने कहा " तुम मुझसे अपनी हर बात शेयर करती थी और मुझे क्लास में सबसे इंटेलीजेंट मानती थी मैथ्स में "
उसने कहा " यस,,,,,  आई गोट यू ,,,, राघव हो न "
मैंने कहा " नहीँ रे ,,,, और अंदाज लगाओ "
उसने कहा " फिर तो तुम पक्का शीतल हो ,,,,, नए  नंबर से मजे ले रहा है मेरे "
मैंने कहा "चल एक और हिंट देता हूँ ,,,, मेरा बर्थडे तुझसे अगले  दिन आता है ,,,, और हम स्कूल में एक दूसरे की हेल्प करते थे चॉकलेट बाँटने में "
उसने कुछ देर सोचा फिर बोली " नहीं याद आ रहा है यार ,,,,, बता ही दो तुम खुद"
मैं अब थोड़ा निराश होने लगा की ये तो मुझे बिलकुल भूल चुकी है ,,,, जिसने सारा बचपन मेरे साथ गुजारा ,,,,, जो 12 में से 6 -7  घंटे मेरे साथ गुजारती थी ,,,,, लगभग हर छोटी बड़ी बात मुझसे शेयर करती थी ,,,, आज पहचान भी नहीं पा रही है ,,,,,
खैर ,,,, फिर मैंने अपनी ज्यादा फजीहत न कराते हुए अपना नाम बता दिया।
वो बोली " ऊप्स यार तू है ,,,, कहाँ से मिले मेरे नंबर ?"
मैंने कहा " जिसे चाह होती है वो राह पा ही लेता है "
वो बोली " ओह्ह ऐसा क्या ,,,, ? "
मैंने एक स्माइली भेजी और बोला " हाँ जी मैडम ऐसा "
जवाब में उसने भी एक स्माइली भेजी
हालाँकि मन में कुछ निराशा थी पर पुरानी मित्र के मिलने की ख़ुशी भी थी मन में
मैंने पूछा " और सुना कैसी चल रही है लाइफ ,,,,,, शादी करली या अभी तक आज़ाद है "
वो बोली " हाँ कर ली ,,,, और तूने ?"
मैंने कहा " हाँ मेने भी अपनी आज़ादी गिरवी रख दी ,,," और एक नॉटी मुस्कान भेजी उसे
जवाब में वो बस एक स्माइली भेजी
मुझे लगा शायद वो बीजी है तो मैंने पूछा "अगर तू बीजी है तो बाद में बात करते है "
वो बोली " नहीं बीजी नहीं हु ,,,, और बता भाभी कैसी है ,,,, ?"
मैंने कहा " मस्त है वो ,,, तू बता तेरे मियांजी के क्या हाल ,,,, ? "
वो बोली " अच्छे है वो भी ,,, अच्छा चल बाद में बात करती हु मैं अभी थोड़ी बीजी हु "
मैंने कहा " ओके ,,, कोई बात नहीं,,, टेक केयर "
और वो बिना रिप्लाई दिए चली गयी ,,,,
उसके बाद मैंने कई दफा उसे हाय हेलो के मैसेज किये पर उसने रिप्लाई नहीं दिया

पता नहीं क्यों हमारे पास अंजानो के लिए वक़्त होता है पर अपनी पहचान वालों के लिए नहीं
एक अनजाने नंबर से मैसेज आ जाये तो हम जिज्ञासु हो जाते है की ये कौन है ,,,, पर पहचान वालों
के लिए हम बीजी हो जाते है
ये वाकया भी ऐसा ही है जब तक मैं उसके लिए अपरिचित था वो मजे से बात कर रही थी और फिर उसने पलट के नहीं देखा ,,,, हो सकता है मेरे साथ ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मैं बोरिंग हूँ ,,,, पर ये कई और भी लोगो की शिकायत रहती है कई दफा ,,,, फेसबुक , व्हाट्सप्प जैसे सोशल नेटवर्किंग पर हम उनसे घंटो चैट कर लेते है जिससे मिले नहीं होते ,,, पर रिश्तेदारों से 5 मिनिट भी बात करना बोरिंग हो जाता है घर पर परिवारजनो के साथ बैठ के बात करने के लिए वक़्त नहीं होता ,,,,ये  क्या सोशल नेटवर्किंग है की बाहर के लोगो से हम जान पहचान बढ़ाएं और आस पास वाले और जान पहचान वाले उपेक्षित किये जाये
आई थिंक वी नीड तो थिंक अबाउट